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अख़लाक मोहम्मद ख़ान 'शहरयार' |
आज उर्दू के मशहूर शायर अख़लाक
मोहम्मद ख़ान 'शहरयार' (16 जून 1936 - 13 फरवरी 2012) की जन्मतिथि है। उनकी स्मृति को नमन करते हुए पेश हैं
कुछ ग़ज़लें : बीइंग पोएट
1.
तेरी जुदाई में क्या-क्या दिखाई देता है
कहीं पे तू कहीं तुझ-सा दिखाई देता है
कहीं पे तू कहीं तुझ-सा दिखाई देता है
ज़माना हो गया ऐसे किसी सफ़र में हूँ
कि अब न मोड़ न रस्ता दिखाई देता है
कि अब न मोड़ न रस्ता दिखाई देता है
उलझ रही है बहुत मुझसे मेरे पाँव की गर्द
क़दम-क़दम पे तमाशा दिखाई देता है
क़दम-क़दम पे तमाशा दिखाई देता है
अजीब वक़्त सुनो आ पड़ा है सूरज पर
तुलू होता न ढलता दिखाई देता है
तुलू होता न ढलता दिखाई देता है
ये मेरी आँखें नहीं दूसरों की आँखें हैं
अंधेरा है प’ उजाला दिखाई देता है
अंधेरा है प’ उजाला दिखाई देता है
2.
इसे गुनाह कहें या
कहें सवाब का काम
नदी को सौंप दिया प्यास ने सराब का काम
नदी को सौंप दिया प्यास ने सराब का काम
हम एक चेहरे को हर
ज़ाविए से देख सकें
किसी तरह से मुकम्मल हो नक्शे-आब का काम
किसी तरह से मुकम्मल हो नक्शे-आब का काम
हमारी आँखे कि
पहले तो खूब जागती हैं
फिर उसके बाद वो करतीं है सिर्फ़ ख़्वाब का काम
फिर उसके बाद वो करतीं है सिर्फ़ ख़्वाब का काम
वो रात-कश्ती
किनारे लगी कि डूब गई
सितारे निकले तो थे करने माहताब का काम
सितारे निकले तो थे करने माहताब का काम
फ़रेब ख़ुद को दिए
जा रहे हैं और ख़ुश हैं
उसे ख़बर है कि दुश्वार है हिजाब का काम
उसे ख़बर है कि दुश्वार है हिजाब का काम
3.
ऐसे हिज्र के मौसम
अब कब आते हैं
तेरे अलावा याद हमें सब आते हैं
तेरे अलावा याद हमें सब आते हैं
जज़्ब करे क्यों
रेत हमारे अश्कों को
तेरा दामन तर करने अब आते हैं
तेरा दामन तर करने अब आते हैं
अब वो सफ़र की ताब
नहीं बाक़ी वरना
हम को बुलावे दश्त से जब-तब आते हैं
हम को बुलावे दश्त से जब-तब आते हैं
जागती आँखों से भी
देखो दुनिया को
ख़्वाबों का क्या है वो हर शब आते हैं
ख़्वाबों का क्या है वो हर शब आते हैं
काग़ज़ की कश्ती
में दरिया पार किया
देखो हम को क्या-क्या करतब आते हैं
देखो हम को क्या-क्या करतब आते हैं
4.
सूरज का सफ़र
ख़त्म हुआ रात न आयी
हिस्से में मेरे ख़्वाबों की सौग़ात न आयी
हिस्से में मेरे ख़्वाबों की सौग़ात न आयी
मौसम ही पे हम
करते रहे तब्सरा ता देर
दिल जिस से दुखे ऐसी कोई बात न आयी
दिल जिस से दुखे ऐसी कोई बात न आयी
यूं डोरे को हम
वक्त की पकड़े तो हुए थे
एक बार मगर छूटी तो फिर हाथ न आयी
एक बार मगर छूटी तो फिर हाथ न आयी
हमराह कोई और न
आया तो क्या गिला
परछाई भी जब मेरी मेरे साथ न आयी
परछाई भी जब मेरी मेरे साथ न आयी
हर सिम्त नज़र आती
हैं बेफ़स्ल ज़मीनें
इस साल भी शहर में बरसात न आयी
इस साल भी शहर में बरसात न आयी
6.
महफिल में बहुत लोग थे
मै तन्हा गया था
हाँ, तुझ को वहाँ देख कर कुछ डर सा लगा था
हाँ, तुझ को वहाँ देख कर कुछ डर सा लगा था
ये हादसा किस वक्त कहाँ
कैसे हुआ था
प्यासों के तअक्कुब सुना दरिया गया था
प्यासों के तअक्कुब सुना दरिया गया था
आँखे हैं कि बस रौजने
दीवार हुई हैं
इस तरह तुझे पहले कभी देखा गया था
इस तरह तुझे पहले कभी देखा गया था
ऐ खल्के-खुदा तुझ को
यकीं आए-न-आए
कल धूप तहफ्फुज के लिए साया गया था
कल धूप तहफ्फुज के लिए साया गया था
वो कौन सी साअत थी पता
हो तो बताओ
ये वक्त शबो-रोज में जब बाँटा गया था
ये वक्त शबो-रोज में जब बाँटा गया था
7.
कहीं ज़रा सा अँधेरा भी
कल की रात न था
गवाह कोई मगर रौशनी के साथ न था
गवाह कोई मगर रौशनी के साथ न था
सब अपने तौर से जीने के
मुद्दई थे यहाँ
पता किसी को मगर रम्ज़े-काएनात न था
पता किसी को मगर रम्ज़े-काएनात न था
कहाँ से कितनी उड़े और
कहाँ पे कितनी जमे
बदन की रेत को अंदाज़-ए-हयात न था
बदन की रेत को अंदाज़-ए-हयात न था
मेरा वजूद मुनव्वर है
आज भी उस से
वो तेरे क़ुब का लम्हा जिसे सबात न था
वो तेरे क़ुब का लम्हा जिसे सबात न था
मुझे तो फिर भी
मुक़द्दर पे रश्क आता है
मेरी तबाही में हरचंद तेरा हाँथ न था
मेरी तबाही में हरचंद तेरा हाँथ न था
8.
हुआ ये क्या कि ख़मोशी
भी गुनगुनाने लगी
गई रुतों की हर इक बात याद आने लगी
गई रुतों की हर इक बात याद आने लगी
ज़मीने-दिल पे कई नूर
के मीनारे थे
ख़याल आया किसी का तो धुंध छाने लगी
ख़याल आया किसी का तो धुंध छाने लगी
ख़बर ये जबसे पढ़ी है, ख़ुशी का हाल न पूछ
सियाह-रात! तुझे रौशनी सताने लगी
सियाह-रात! तुझे रौशनी सताने लगी
दिलों में लोगों के
हमदर्दियाँ हैं मेरे लिए
मैं आज ख़ुश हूँ कि मेहनत मेरी ठिकाने लगी
मैं आज ख़ुश हूँ कि मेहनत मेरी ठिकाने लगी
बुरा कहो कि भला समझो
ये हक़ीक़त है
जो बात पहले रुलाती थी अब हँसाने लगी
जो बात पहले रुलाती थी अब हँसाने लगी
9.
तमाम शहर में जिस
अजनबी का चर्चा है
सभी की राय है, वह शख़्स मेरे जैसा है
सभी की राय है, वह शख़्स मेरे जैसा है
बुलावे आते हैं
कितने दिनों से सहरा के
मैं कल ये लोगों से पूछूंगा किस को जाना है
मैं कल ये लोगों से पूछूंगा किस को जाना है
कभी ख़याल ये आता
है खेल ख़त्म हुआ
कभी गुमान गुज़रता है एक वक़्फ़ा है।
कभी गुमान गुज़रता है एक वक़्फ़ा है।
सुना है
तर्के-जुनूँ तक पहुँच गए हैं लोग
ये काम अच्छा नहीं पर मआल अच्छा है
ये काम अच्छा नहीं पर मआल अच्छा है
ये चल-चलावे के
लम्हे हैं, अब तो सच बोलो
जहाँ ने तुम को कि तुम ने जहाँ को बदला है
जहाँ ने तुम को कि तुम ने जहाँ को बदला है
पलट के पीछे नहीं
देखता हूँ ख़ौफ़ से मैं
कि संग होते हुए दोस्तों को देखा है
कि संग होते हुए दोस्तों को देखा है
10.
शिकवा कोई दरिया
की रवानी से नहीं है
रिश्ता ही मेरी प्यास का पानी से नहीं है
रिश्ता ही मेरी प्यास का पानी से नहीं है
कल यूँ था कि ये
क़ैदे-ज़्मानी से थे बेज़ार
फ़ुर्सत जिन्हें अब सैरे-मकानी से नहीं है
फ़ुर्सत जिन्हें अब सैरे-मकानी से नहीं है
चाहा तो यकीं आए न
सच्चाई पे इसकी
ख़ाइफ़ कोई गुल अहदे-खिज़ानी से नहीं है
ख़ाइफ़ कोई गुल अहदे-खिज़ानी से नहीं है
दोहराता नहीं मैं
भी गए लोगों की बातें
इस दौर को निस्बत भी कहानी से नहीं है
इस दौर को निस्बत भी कहानी से नहीं है
कहते हैं मेरे हक़
में सुख़नफ़ह्म बस इतना
शे'रों में जो ख़ूबी है मआनी से नहीं है
शे'रों में जो ख़ूबी है मआनी से नहीं है
11.
हम पढ़ रहे थे ख़्वाब के पुर्ज़ों को जोड़ के
आँधी ने ये तिलिस्म भी रख डाला तोड़ के
आँधी ने ये तिलिस्म भी रख डाला तोड़ के
आग़ाज़ क्यों किया
था सफ़र उन ख़्वाबों का
पछता रहे हो सब्ज़ ज़मीनों को छोड़ के
पछता रहे हो सब्ज़ ज़मीनों को छोड़ के
इक बूँद ज़हर के
लिये फैला रहे हो हाथ
देखो कभी ख़ुद अपने बदन को निचोड़ के
देखो कभी ख़ुद अपने बदन को निचोड़ के
कुछ भी नहीं जो
ख़्वाब की तरह दिखाई दे
कोई नहीं जो हम को जगाये झिन्झोड़ के
कोई नहीं जो हम को जगाये झिन्झोड़ के
इन पानियों से कोई
सलामत नहीं गया
है वक़्त अब भी कश्तियाँ ले जाओ मोड़ के
है वक़्त अब भी कश्तियाँ ले जाओ मोड़ के
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