पिछले
महीने हिंदी कविताओं का एक संग्रह आया है – मेरी यात्रा
का ज़रूरी सामान (बोधि प्रकाशन, जयपुर)। कवि हैं - लीना मल्होत्रा राव। संग्रह
में शामिल अनुभव की आँच पर पकी हुई इन कविताओं में न सिर्फ़ स्त्री के विभिन्न पहलू
पर प्रकाश पड़ता है, बल्कि जीवन के कई कारोबार भी समाहित हैं।
कवि की सोच की सतह पर सामाजिक विसंगति के विरुद्ध एक बहुत ही बारीक आवाज़ उठती है, जो चिल्लाहट से भरपूर नहीं अपितु नेज़े के नोक की तरह पैनी है। पलक झपकने
के पहले ही कब ये कविताएँ हमारे भीतर अपना आकार लेने लगती हैं, पता नहीं चलता। इन कविताओं के माध्यम से कब ये कवि अपने लिए हमारे भीतर
प्रतिष्ठा का पुल निर्मित कर लेता है, हमें मालूम नहीं पड़ता।
लीना मल्होत्रा राव को शुभकामनाओं सहित प्रस्तुत हैं संग्रह से कुछ चुनिंदा कविताएँ : बीइंग पोएट
फलक
तुम्हारे पास सिगरेट थी
मेरे पास सूरज
सप्तपदी में दोनों ही शामिल न थे!
फिर जब मैंने
सूरज को धो पोंछकर, चमकाकर फलक पर रखा
तो धरती क्यों गाढे धुंए से भर गई
मेरे पास सूरज
सप्तपदी में दोनों ही शामिल न थे!
फिर जब मैंने
सूरज को धो पोंछकर, चमकाकर फलक पर रखा
तो धरती क्यों गाढे धुंए से भर गई
क्या तुम्हारी सिगरेट मेरे सूरज से जलती थी?
साक्षात्कार
शब्द के बेलगाम घोड़े पर सवार
हर सितारे को एक टापू की तरह टापते
हुए मै
घूम आई हूँ इस विस्तार में
जहाँ पदार्थ सिर्फ ध्वनि मात्र
थे
और पकड़ के लटक जाने का कोई साधन नही
था
एक चिर निद्रा में डूबे स्वप्न की तरह
स्वीकृत
तर्कहीन, कारणहीन ध्वनि
जो डूबी भी थी तिरती भी थी
तारामंडल ग्रहमंडल सूर्यलोक और
अन्तरिक्ष में
जिसे न सिर्फ सुना जा सकता है
बल्कि देखा जा सकता है
असंख्य असंख्य आँखों से
और पकड़ में नहीं आती थी
और वह शब्द का घोडा तरल हवा सा
जो अंधड़ था या ज्वार
जो बहता भी था उड़ता भी था
चक्र भी था सैलाब भी
और यह आकाश जो खाली न था रीता न था
फक्कड़ न था
था ओजस्वी पावन
तारों का पिता
उड़ते थे तारे आकाश सब मिलजुल कर
परीक्षा का समय
आनंद से पहले की घडी
क्या वह मै ही थी
इस उजियारे अँधेरे जगत में फैली
एक कविता ...
ओ मेरे हत्यारे
ओ मेरे हत्यारे-
मेरी हत्या के बाद भी
जबकि मर जाना चाहिए था मुझे
निर्लिप्त हो जाना चाहिए था मेरी देह को
उखड जाना चाहिए था मेरी साँसों को
शेष हो जाना चाहिए था मेरी भावनाओं को
मेरे मन का लाक्षाग्रह धू धू करके जलता रहा
मेरी उत्तप्त देह संताप के अनगिनत युग जी गई
मेरी हत्या के बाद भी
जबकि मर जाना चाहिए था मुझे
निर्लिप्त हो जाना चाहिए था मेरी देह को
उखड जाना चाहिए था मेरी साँसों को
शेष हो जाना चाहिए था मेरी भावनाओं को
मेरे मन का लाक्षाग्रह धू धू करके जलता रहा
मेरी उत्तप्त देह संताप के अनगिनत युग जी गई
क्योंकि धडकनों के ठीक नीचे वह पल धडकता रहा
प्रेम का
जो जी चुकी हूँ मैं
वही एक पल
जिसने जीवन को खाली कर दिया
प्रेम का
जो जी चुकी हूँ मैं
वही एक पल
जिसने जीवन को खाली कर दिया
समझ लो तुम
नैतिकता अनैतिकता से नही
विस्फोटक प्रश्नों
न ही वाद विवाद से
न
तुमसे भी नहीं
विस्फोटक प्रश्नों
न ही वाद विवाद से
न
तुमसे भी नहीं
डरता है प्रेम
अपने ही होने से ...
अपने ही होने से ...
वह बस एक ही पल का चमत्कार था
जब पृथ्वी पागल होकर दौड़ पड़ी थी अपनी कक्षा में
और तारे उद्दीप्त होकर चमकने लगे थे
करोड़ो साल पहले ...
और जल रहीं है उनकी आत्माए
उसी प्रेम के इकलौते क्षण की स्मृति में टंगी हुई आसमान में
जब पृथ्वी पागल होकर दौड़ पड़ी थी अपनी कक्षा में
और तारे उद्दीप्त होकर चमकने लगे थे
करोड़ो साल पहले ...
और जल रहीं है उनकी आत्माए
उसी प्रेम के इकलौते क्षण की स्मृति में टंगी हुई आसमान में
और शून्य बजता है सांय सांय
तुम्हारे प्रेम में गणित था - 1
वह
जो प्रेम था
शतरंज की बिसात की तरह बिछा हुआ हमारे बीच
तुमने चले दांव पेच
और मैंने बस ये
कि इस खेल में उलझे रहो तुम मेरे साथ
शतरंज की बिसात की तरह बिछा हुआ हमारे बीच
तुमने चले दांव पेच
और मैंने बस ये
कि इस खेल में उलझे रहो तुम मेरे साथ
तुम्हारे प्रेम में गणित था
कितनी देर और...?
मेरे गणित में प्रेम था
बस एक और.. दो और...
कितनी देर और...?
मेरे गणित में प्रेम था
बस एक और.. दो और...
तुम्हारा प्रेम दैहिक प्रेम था
जो देह के साथ इस जन्म में ख़त्म हो जाएगा
और मेरा एक कल्पना
जो देह के साथ इस जन्म में ख़त्म हो जाएगा
और मेरा एक कल्पना
जो अपने डैने फैलाकर अँधेरी गुफा में मापता रहेगा
अज्ञात आकाश,
और नींद में बढेगा अन्तरिक्ष तक
मस्तिष्क की स्मृति में अक्षुण रहेगा मृत्यु के बाद भी
और सूक्ष्म शरीर ढो कर ले जाएगा उसे कई जन्मो तक
मैंने शायद तुमसे सपने में प्रेम किया था
मस्तिष्क की स्मृति में अक्षुण रहेगा मृत्यु के बाद भी
और सूक्ष्म शरीर ढो कर ले जाएगा उसे कई जन्मो तक
मैंने शायद तुमसे सपने में प्रेम किया था
अगले जन्म में
मै तुमसे फिर मिलूंगी
किसी खेल में
या व्यापार में
मै तुमसे फिर मिलूंगी
किसी खेल में
या व्यापार में
तब होगा प्रेम का हिसाब
मै गणित सीख लूंगी तब तक
मै गणित सीख लूंगी तब तक
तुम्हारे प्रेम में गणित था - 2
वह जो दर्द था हमारे बीच,
रेल की पटरियों की तरह जुदा रहने का
मैंने माना उसे
मोक्ष का द्वार जहाँ अलिप्त होने की पूरी सम्भावनाये मौजूद थी
और तुमने
एक समानान्तर जीवन
बस एक दूरी भोगने और जानने के बीच
जिसके पटे बिना संभव न था प्रेम
रेल की पटरियों की तरह जुदा रहने का
मैंने माना उसे
मोक्ष का द्वार जहाँ अलिप्त होने की पूरी सम्भावनाये मौजूद थी
और तुमने
एक समानान्तर जीवन
बस एक दूरी भोगने और जानने के बीच
जिसके पटे बिना संभव न था प्रेम
वह जो देह का
व्यापार था हमारे बीच
मैंने माना
वह एक उड़नखटोला था
जादू था
जो तुम्हे मुझ तक और मुझे तुम तक पहुंचा सकता था
तुमने माना लेन-देन
देह एक औज़ार
उस औजार से तराशी हुई एक व्यभिचारिणी मादा
जो
शराबी की तरह धुत हो जाए और
अगली सुबह उसे कुछ याद न रहे
या
एक दोमट मिटटी जो मात्र उपकरण हो एक नई फसल उगाने का।
मैंने माना
वह एक उड़नखटोला था
जादू था
जो तुम्हे मुझ तक और मुझे तुम तक पहुंचा सकता था
तुमने माना लेन-देन
देह एक औज़ार
उस औजार से तराशी हुई एक व्यभिचारिणी मादा
जो
शराबी की तरह धुत हो जाए और
अगली सुबह उसे कुछ याद न रहे
या
एक दोमट मिटटी जो मात्र उपकरण हो एक नई फसल उगाने का।
मौन
वो सब बाते अनकही रह गई है
जो मै तुमसे और तुम मुझसे कहना चाहती थी
हम भूल गए थे
जब आँखे बात करती है
शब्द सहम कर खड़े रहते है
जो मै तुमसे और तुम मुझसे कहना चाहती थी
हम भूल गए थे
जब आँखे बात करती है
शब्द सहम कर खड़े रहते है
रात की छलनी
से छन के निकले थे जो पल
वे सब मौन ही थे
उन भटकी हुई दिशाओ में
तुम्हारे मुस्कराहटो से भरी नजरो ने जो चांदनी की चादर बिछाई थी
अंजुरी भर भर पी लिए थे नेत्रों ने लग्न मन्त्र
याद है मुझे
वे सब मौन ही थे
उन भटकी हुई दिशाओ में
तुम्हारे मुस्कराहटो से भरी नजरो ने जो चांदनी की चादर बिछाई थी
अंजुरी भर भर पी लिए थे नेत्रों ने लग्न मन्त्र
याद है मुझे
अब भी मेरी सुबह जब खुशगवार होती है
मै जानता हूँ ये बेवजह नही
तुम अपनी जुदा राह पर
मुझे याद कर रही हो
मै जानता हूँ ये बेवजह नही
तुम अपनी जुदा राह पर
मुझे याद कर रही हो
बीत जाने के बाद
आज तुम लौट आये हो
मेरे हाथों में कोई कंपन नही
न ही दृष्टि में नमी
दिल की धड़कन भी पगलाई सी नही छूट कर भागी
मेरे हाथों में कोई कंपन नही
न ही दृष्टि में नमी
दिल की धड़कन भी पगलाई सी नही छूट कर भागी
साफ़ साफ़ देख पा रही हूँ तुम्हे
वैसे नही जैसे मैं देखना चाहती हूँ बल्कि वैसे जैसे कि तुम हो
वैसे नही जैसे मैं देखना चाहती हूँ बल्कि वैसे जैसे कि तुम हो
सोच रही हूँ की ऐसा क्या है तुममे जो
मैं दांव पर लगा दूँ अपना जीवन
मैं दांव पर लगा दूँ अपना जीवन
कैसे एक चित्र में जड़ हो गई थी मैं तुम्हारे साथ
भविष्य के एक टापू पर
जहाँ हम दोनों साथ रहते थे
उस पर आकाश से उतरी उस इकलौती नाव में हम घूमते थे
और मैं अकेली
अकेले तट पर बैठकर करती थी प्रतीक्षा
और उस सपने को रोज़ देख देख कर भी मैं कभी बोर नही हुई
भविष्य के एक टापू पर
जहाँ हम दोनों साथ रहते थे
उस पर आकाश से उतरी उस इकलौती नाव में हम घूमते थे
और मैं अकेली
अकेले तट पर बैठकर करती थी प्रतीक्षा
और उस सपने को रोज़ देख देख कर भी मैं कभी बोर नही हुई
अब आये हो तो रुको
एक कप चाय पीकर जाना
अभी भी चाय में खौलता है पानी का पागलपन
नहीं यह प्रेम का नहीं आंच का दोष है
तब भी उसी का दोष था
एक कप चाय पीकर जाना
अभी भी चाय में खौलता है पानी का पागलपन
नहीं यह प्रेम का नहीं आंच का दोष है
तब भी उसी का दोष था
आहा ! मुझे तुमसे नही
उन दिनों से प्रेम था
बहने से प्रेम था उड़ने से प्रेम था डूब जाने से प्रेम था
नहीं स्वीकारना नहीं चाहती थी
तुम न आते तो क्या ही अच्छा था
उन दिनों से प्रेम था
बहने से प्रेम था उड़ने से प्रेम था डूब जाने से प्रेम था
नहीं स्वीकारना नहीं चाहती थी
तुम न आते तो क्या ही अच्छा था
साफ़ साफ़ देख पा रही हूँ तुम्हे
ReplyDeleteवैसे नही जैसे मैं देखना चाहती हूँ बल्कि वैसे जैसे कि तुम हो
सोच रही हूँ की ऐसा क्या है तुममे जो
मैं दांव पर लगा दूँ अपना जीवन
badhia kavitaye badhai Leena jee shukariya Tripurari
leena jee ki kavitayen behad prabhavi hai ,khastaur par 'tumhare prem me gadit tha' aur unki lekhni me ek achhi soch ke sath sath shabdo ka achuk mail hai.
ReplyDelete....वह बस एक ही पल का चमत्कार था/जब पृथ्वी पागल होकर दौड़ पड़ी थी अपनी कक्षा में/और तारे उद्दीप्त होकर चमकने लगे थे/करोड़ो साल पहले .../और जल रहीं है उनकी आत्माए/उसी प्रेम के इकलौते क्षण की स्मृति में टंगी हुई आसमान में/और शून्य बजता है सांय सांय... लीनजी की कवितायें बहुत समय तक मन को कचोटती रहती हैं.... नए - नए बिम्ब और तराशे हुए शिल्प के साथ सहज ही मन मे बस जाने वाली कवितायें हैं। बधाई। त्रिपुरारीजी का आभार।
ReplyDeletemere paas bas ek hi shabd hai.....
ReplyDelete"SUPERB.."
.
ReplyDeleteवो रोती हैं
चिल्लाती हैं
दुनिया को बताती
लिखती हैं
उन देवताओं पर
जिन्होंने उसे उपेक्षित किया
दुख दिया.
मगर पुजती हैं उन्ही देवताओं को
हर रोज श्रद्धा से
जिन्होंने रात के अँधेरे में
उसकी अस्मत को लूटा
अब देवता सच्चा हैं
या वो झूठी
ये आप कहो
क्योकि उसकी हर बात पर
वाह वाह करने वाले देवता
आज भी उसे धोखा देते हैं ...............रवि विद्रोही
'डरता है प्रेम
ReplyDeleteअपने ही होने से .
..
वह बस एक ही पल का चमत्कार था
जब पृथ्वी पागल होकर दौड़ पड़ी थी अपनी कक्षा में
और तारे उद्दीप्त होकर चमकने लगे थे
करोड़ो साल पहले ...
और जल रहीं है उनकी आत्माए
उसी प्रेम के इकलौते क्षण की स्मृति में टंगी हुई आसमान में
...
और शून्य बजता है सांय सांय....'
बहुत ही अच्छी कविताएं !
---- उदय प्रकाश
है भगवान इतना सारा और अच्छा अच्छा कैसे लिख लेते हैं आप
ReplyDeleteक्या ऐसा हो सकता है कि आप वर्ड वेरीफ़िकेशन हटा लें
ye word verification blogger ne laga rakha hai...meri or se koi pabandi hai ...
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