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रामधारी सिंह ‘दिनकर’ |
आज राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ (23 सितंबर 1908 - 24 अप्रैल
1974) की जन्मतिथि है। इस अवसर पर प्रस्तुत हैं कुछ कविताएँ : बीइंग पोएट
झील
मत छुओ इस झील को।
कंकड़ी मारो नहीं,
पत्तियाँ डारो नहीं,
फूल मत बोरो।
और कागज की तरी इसमें नहीं छोड़ो।
कंकड़ी मारो नहीं,
पत्तियाँ डारो नहीं,
फूल मत बोरो।
और कागज की तरी इसमें नहीं छोड़ो।
खेल में तुमको पुलक-उन्मेष
होता है,
लहर बनने में सलिल को क्लेश होता है।
लहर बनने में सलिल को क्लेश होता है।
चांद का कुर्ता
एक बार की बात,
चंद्रमा बोला अपनी माँ से
"कुर्ता एक नाप का मेरी, माँ मुझको सिलवा दे
नंगे तन बारहों मास मैं यूँ ही घूमा करता
गर्मी, वर्षा, जाड़ा हरदम बड़े कष्ट से सहता।"
माँ हँसकर बोली, सिर पर रख हाथ,
चूमकर मुखड़ा
"बेटा खूब समझती हूँ मैं तेरा सारा दुखड़ा
लेकिन तू तो एक नाप में कभी नहीं रहता है
पूरा कभी, कभी आधा, बिलकुल न कभी दिखता है"
"आहा माँ ! फिर तो हर दिन की मेरी नाप लिवा दे
एक नहीं पूरे पंद्रह तू कुर्ते मुझे सिला दे।"
"कुर्ता एक नाप का मेरी, माँ मुझको सिलवा दे
नंगे तन बारहों मास मैं यूँ ही घूमा करता
गर्मी, वर्षा, जाड़ा हरदम बड़े कष्ट से सहता।"
माँ हँसकर बोली, सिर पर रख हाथ,
चूमकर मुखड़ा
"बेटा खूब समझती हूँ मैं तेरा सारा दुखड़ा
लेकिन तू तो एक नाप में कभी नहीं रहता है
पूरा कभी, कभी आधा, बिलकुल न कभी दिखता है"
"आहा माँ ! फिर तो हर दिन की मेरी नाप लिवा दे
एक नहीं पूरे पंद्रह तू कुर्ते मुझे सिला दे।"
निराशावादी
पर्वत पर,
शायद, वृक्ष न कोई शेष बचा,
धरती पर, शायद, शेष बची है नहीं घास;
उड़ गया भाप बनकर सरिताओं का पानी,
बाकी न सितारे बचे चाँद के आस-पास।
धरती पर, शायद, शेष बची है नहीं घास;
उड़ गया भाप बनकर सरिताओं का पानी,
बाकी न सितारे बचे चाँद के आस-पास।
क्या कहा कि मैं घनघोर
निराशावादी हूँ?
तब तुम्हीं टटोलो हृदय देश का, और कहो,
लोगों के दिल में कहीं अश्रु क्या बाकी है?
बोलो, बोलो, विस्मय में यों मत मौन रहो।
तब तुम्हीं टटोलो हृदय देश का, और कहो,
लोगों के दिल में कहीं अश्रु क्या बाकी है?
बोलो, बोलो, विस्मय में यों मत मौन रहो।
मनुष्यता
है बहुत बरसी धरित्री पर
अमृत की धार;
पर नहीं अब तक सुशीतल हो सका संसार।
भोग लिप्सा आज भी लहरा रही उद्दाम;
बह रही असहाय नर कि भावना निष्काम।
पर नहीं अब तक सुशीतल हो सका संसार।
भोग लिप्सा आज भी लहरा रही उद्दाम;
बह रही असहाय नर कि भावना निष्काम।
लक्ष्य क्या?
उद्देश्य क्या? क्या अर्थ?
यह नहीं यदि ज्ञात तो विज्ञानं का श्रम व्यर्थ।
यह मनुज, जो ज्ञान का आगार;
यह मनुज, जो सृष्टि का श्रृंगार।
यह नहीं यदि ज्ञात तो विज्ञानं का श्रम व्यर्थ।
यह मनुज, जो ज्ञान का आगार;
यह मनुज, जो सृष्टि का श्रृंगार।
छद्म इसकी कल्पना,
पाखण्ड इसका ज्ञान;
यह मनुष्य, मनुष्यता का घोरतम अपमान।
यह मनुष्य, मनुष्यता का घोरतम अपमान।
करघा
हर ज़िन्दगी कहीं न कहीं
दूसरी ज़िन्दगी से टकराती है।
हर ज़िन्दगी किसी न किसी
ज़िन्दगी से मिल कर एक हो जाती है।
दूसरी ज़िन्दगी से टकराती है।
हर ज़िन्दगी किसी न किसी
ज़िन्दगी से मिल कर एक हो जाती है।
ज़िन्दगी ज़िन्दगी से
इतनी जगहों पर मिलती है
कि हम कुछ समझ नहीं पाते
और कह बैठते हैं यह भारी झमेला है।
संसार संसार नहीं,
बेवकूफ़ियों का मेला है।
इतनी जगहों पर मिलती है
कि हम कुछ समझ नहीं पाते
और कह बैठते हैं यह भारी झमेला है।
संसार संसार नहीं,
बेवकूफ़ियों का मेला है।
हर ज़िन्दगी एक सूत है
और दुनिया उलझे सूतों का जाल है।
इस उलझन का सुलझाना
हमारे लिये मुहाल है।
और दुनिया उलझे सूतों का जाल है।
इस उलझन का सुलझाना
हमारे लिये मुहाल है।
मगर जो बुनकर करघे पर बैठा
है,
वह हर सूत की किस्मत को
पहचानता है।
वह हर सूत की किस्मत को
पहचानता है।
सूत के टेढ़े या सीधे चलने
का
क्या रहस्य है,
बुनकर इसे खूब जानता है।
’हारे को हरिनाम’ से
क्या रहस्य है,
बुनकर इसे खूब जानता है।
’हारे को हरिनाम’ से
पक्षी और बादल
ये भगवान के डाकिये हैं,
जो एक महादेश से
दूसरे महादेश को जाते हैं।
जो एक महादेश से
दूसरे महादेश को जाते हैं।
हम तो समझ नहीं पाते हैं,
मगर उनकी लायी चिठि्ठयाँ
पेड़, पौधे, पानी और पहाड़
बाँचते हैं।
मगर उनकी लायी चिठि्ठयाँ
पेड़, पौधे, पानी और पहाड़
बाँचते हैं।
हम तो केवल यह आँकते हैं
कि एक देश की धरती
दूसरे देश को सुगन्ध भेजती है।
कि एक देश की धरती
दूसरे देश को सुगन्ध भेजती है।
और वह सौरभ हवा में तैरती
हुए
पक्षियों की पाँखों पर तिरता है।
और एक देश का भाप
दूसरे देश का पानी
बनकर गिरता है।
पक्षियों की पाँखों पर तिरता है।
और एक देश का भाप
दूसरे देश का पानी
बनकर गिरता है।
लेन-देन
लेन-देन का हिसाब
लंबा और पुराना है।
लंबा और पुराना है।
जिनका कर्ज हमने खाया था,
उनका बाकी हम चुकाने आये हैं।
और जिन्होंने हमारा कर्ज खाया था,
उनसे हम अपना हक पाने आये हैं।
उनका बाकी हम चुकाने आये हैं।
और जिन्होंने हमारा कर्ज खाया था,
उनसे हम अपना हक पाने आये हैं।
लेन-देन का व्यापार अभी
लंबा चलेगा।
जीवन अभी कई बार पैदा होगा
और कई बार जलेगा।
जीवन अभी कई बार पैदा होगा
और कई बार जलेगा।
और लेन-देन का सारा
व्यापार
जब चुक जायेगा,
ईश्वर हमसे खुद कहेगा -
जब चुक जायेगा,
ईश्वर हमसे खुद कहेगा -
तुम्हारा एक पावना मुझ पर
भी है,
आओ, उसे ग्रहण करो।
अपना रूप छोड़ो,
मेरा स्वरूप वरण करो।
आओ, उसे ग्रहण करो।
अपना रूप छोड़ो,
मेरा स्वरूप वरण करो।
लोहे के मर्द
पुरुष वीर बलवान,
देश की शान,
हमारे नौजवान
घायल होकर आये हैं।
देश की शान,
हमारे नौजवान
घायल होकर आये हैं।
कहते हैं,
ये पुष्प, दीप,
अक्षत क्यों लाये हो?
अक्षत क्यों लाये हो?
हमें कामना नहीं
सुयश-विस्तार की,
फूलों के हारों की, जय-जयकार की।
फूलों के हारों की, जय-जयकार की।
तड़प रही घायल स्वदेश की
शान है।
सीमा पर संकट में हिन्दुस्तान है।
सीमा पर संकट में हिन्दुस्तान है।
ले जाओ आरती,
पुष्प, पल्लव हरे,
ले जाओ ये थाल मोदकों ले भरे।
ले जाओ ये थाल मोदकों ले भरे।
तिलक चढ़ा मत और हृदय में
हूक दो,
दे सकते हो तो गोली-बन्दूक दो।
दे सकते हो तो गोली-बन्दूक दो।
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