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देवेन्द्र कुमार देवेश |
देवेन्द्र कुमार देवेश (जन्म: 07 सितंबर 1974) हिंदी के कवि, लेखक और अंग्रेज़ी, बांग्ला एवं हिंदी भाषाओं के
परस्पर अनुवादक हैं। इनके द्वारा लिखित, अनुदित और संपादित
एक दर्जन कृतियाँ प्रकाशित हैं। फिलहाल, साहित्य अकादमी (दिल्ली)
में उप-संपादक के रूप में कार्यरत हैं। प्रस्तुत हैं कुछ कविताएँ : बीइंग पोएट
सपनों की
दुनिया-1
कौन आरोपित करता है
हमारी उनींदी आँखों में / इतने भयावह सपने
अवतरित होकर माता की कोख से
भोगते हैं प्रत्यक्ष में / संसार का जो क्रूर यथार्थ
उससे भी दो क़दम आगे बढ़कर
बुनता है जो हमारे सपने
आख़िर क्यों नहीं चाहता वह
कि कुछ पल के लिए भी लें हम
किसी भी संसार से असंपृक्त होकर / एक गहरी नींद?
हमारी उनींदी आँखों में / इतने भयावह सपने
अवतरित होकर माता की कोख से
भोगते हैं प्रत्यक्ष में / संसार का जो क्रूर यथार्थ
उससे भी दो क़दम आगे बढ़कर
बुनता है जो हमारे सपने
आख़िर क्यों नहीं चाहता वह
कि कुछ पल के लिए भी लें हम
किसी भी संसार से असंपृक्त होकर / एक गहरी नींद?
सपनों की
दुनिया-2
सोई हुई आँखों के सपने
शायद ही कभी होते हैं मनोनुकूल
सब कुछ भिन्न होता है प्रायः
हमारी जागी हुई दुनिया के सपनों से।
किस दुनिया के होते हैं ये सपने?
कैसे रोकें हम इनकी घुसपैठ
अपने अवचेतन मन से चेतन संसार तक?
शायद ही कभी होते हैं मनोनुकूल
सब कुछ भिन्न होता है प्रायः
हमारी जागी हुई दुनिया के सपनों से।
किस दुनिया के होते हैं ये सपने?
कैसे रोकें हम इनकी घुसपैठ
अपने अवचेतन मन से चेतन संसार तक?
सपनों की
दुनिया-3
यदि कभी कोई / एक मोहक-सा
सपना
तैर भी जाता है अनायास / हमारी आँखों में
क्यों फिर उसे / सहेजना. संभालना और ले आना
हमारी इस जागती दुनिया में / होता है मुश्किल
अवचेतन से चेतन की यात्रा में
क्यों खो जाते हैं हमारे सन्दर सपने?
तैर भी जाता है अनायास / हमारी आँखों में
क्यों फिर उसे / सहेजना. संभालना और ले आना
हमारी इस जागती दुनिया में / होता है मुश्किल
अवचेतन से चेतन की यात्रा में
क्यों खो जाते हैं हमारे सन्दर सपने?
सपनों की
दुनिया-4
क्या कभी सम्भव है
कि सोते हुए देखें हम
ऐसे सपने
जो जागने पर खोएँ नहीं
शायद यह सम्भव नहीं
इसलिए देखना चाहता हूँ मैं
जागी हुई दुनिया में
जागे हुए सपने।
कि सोते हुए देखें हम
ऐसे सपने
जो जागने पर खोएँ नहीं
शायद यह सम्भव नहीं
इसलिए देखना चाहता हूँ मैं
जागी हुई दुनिया में
जागे हुए सपने।
सपनों की
दुनिया-5
सपने कभी सच नहीं होते
कि कभी-कभी सच भी हो जाते हैं
पर सबके सब सपने
शायद ही कभी होते हैं सच
और सपने / जो हो जाते हैं सच
होते हैं क्यों / सच से भी भयावह?
अथवा झूठ से भी सुन्दर?
कि चाहे जैसे भी हों
झूठ या सच / मोहक अथवा डरावने
सपनों की चाहत बनी रहेगी हमेशा।
कि कभी-कभी सच भी हो जाते हैं
पर सबके सब सपने
शायद ही कभी होते हैं सच
और सपने / जो हो जाते हैं सच
होते हैं क्यों / सच से भी भयावह?
अथवा झूठ से भी सुन्दर?
कि चाहे जैसे भी हों
झूठ या सच / मोहक अथवा डरावने
सपनों की चाहत बनी रहेगी हमेशा।
ऐ लड़की-1
ऐ लड़की!
लोग मुझसे तुम्हारी बातें करते हैं-
तुम्हारा सौन्दर्य, तुम्हारा व्यवहार
और तुम्हारी मुस्कराहट!
करते हैं वे इंगित
हमारे दरमियान
संगति और सामंजस्य की
तमाम संभावनाएँ
चाहते हैं वे,
हमारे बीच कायम हो
एक रिश्ता
जिन्दगी भर की सोहबत का!
लोग मुझसे तुम्हारी बातें करते हैं-
तुम्हारा सौन्दर्य, तुम्हारा व्यवहार
और तुम्हारी मुस्कराहट!
करते हैं वे इंगित
हमारे दरमियान
संगति और सामंजस्य की
तमाम संभावनाएँ
चाहते हैं वे,
हमारे बीच कायम हो
एक रिश्ता
जिन्दगी भर की सोहबत का!
शायद वे नहीं जानते
कि पड़ा हुआ है हमारे बीच
झीना–सा जो पर्दा
उसकी उस तरफ
तुम्हारा अपना एक प्यारा–सा संसार है,
जहाँ बिखरे पड़े रिश्तों के अहसास
एकजुट हो जकड़ लेते हैं तुम्हें
हरेक ऐसे क्षण में,
जब भी तुम
पाती हो कोई अवसर,
उस पर्दे को हटाने का
या पर्दा पार की दुनिया में जाने का।
कि पड़ा हुआ है हमारे बीच
झीना–सा जो पर्दा
उसकी उस तरफ
तुम्हारा अपना एक प्यारा–सा संसार है,
जहाँ बिखरे पड़े रिश्तों के अहसास
एकजुट हो जकड़ लेते हैं तुम्हें
हरेक ऐसे क्षण में,
जब भी तुम
पाती हो कोई अवसर,
उस पर्दे को हटाने का
या पर्दा पार की दुनिया में जाने का।
ऐ लड़की-2
ऐ लड़की!
सोचता हूँ जब भी मैं
तुम्हारे और अपने बारे में
तो सोचता हूँ उस रिश्ते की बाबत
जो हम दोनों के परिचय से बना है हमारे बीच
और उस रिश्ते के बारे में भी
जैसा यह दुनिया हमारे बीच सोचती है।
सोचता हूँ जब भी मैं
तुम्हारे और अपने बारे में
तो सोचता हूँ उस रिश्ते की बाबत
जो हम दोनों के परिचय से बना है हमारे बीच
और उस रिश्ते के बारे में भी
जैसा यह दुनिया हमारे बीच सोचती है।
सोचता हूँ
एक तुम्हारी अपनी दुनिया,
हम दोनों के मिलने से बनी एक और दुनिया
और दुनिया द्वारा गढ़ी हुई
हम दोनों की एक अलग दुनिया
हरेक दुनिया बिलकुल अलग है दूसरे से
पर हरेक में उपस्थिति है हमारी।
एक तुम्हारी अपनी दुनिया,
हम दोनों के मिलने से बनी एक और दुनिया
और दुनिया द्वारा गढ़ी हुई
हम दोनों की एक अलग दुनिया
हरेक दुनिया बिलकुल अलग है दूसरे से
पर हरेक में उपस्थिति है हमारी।
सोचता हूँ
करें हम साथ–साथ
अथवा अलग–अलग,
आखिर तय तो हमें ही करना है
कि हमें किस दुनिया में रहना है।
करें हम साथ–साथ
अथवा अलग–अलग,
आखिर तय तो हमें ही करना है
कि हमें किस दुनिया में रहना है।
ऐ लड़की-3
ऐ लड़की!
तुझे अब लड़की कहूँ भी तो कैसे?
अब तो बसा लिया है तुमने
अपना एक नया संसार
समर्पित कर दिया है तुमने अपना वजूद
और समाहित कर लिया है
किसी को अपनी दुनिया में।
तुझे अब लड़की कहूँ भी तो कैसे?
अब तो बसा लिया है तुमने
अपना एक नया संसार
समर्पित कर दिया है तुमने अपना वजूद
और समाहित कर लिया है
किसी को अपनी दुनिया में।
मैं जानता हूँ
हँसी–खुशी स्वीकार किया है तुमने यह सब
पर नहीं जानता
उस मानसिक तनाव,
पारिवारिक खुशियों के दबाव
या सामाजिक स्थितियों के बारे में,
जिनको शायद किसी झंझावात की तरह
झेला होगा तुमने
अपने इस फैसले से पहले।
हँसी–खुशी स्वीकार किया है तुमने यह सब
पर नहीं जानता
उस मानसिक तनाव,
पारिवारिक खुशियों के दबाव
या सामाजिक स्थितियों के बारे में,
जिनको शायद किसी झंझावात की तरह
झेला होगा तुमने
अपने इस फैसले से पहले।
मैंने अपनी छोटी–सी जिन्दगी में
बहुत कम अवसर पाए हैं फैसला करने के,
पर मुझे ऐसा लगता है
कि कोई भी फैसला अंतिम नहीं होता
परिणति तो एक और केवल एक ही
होती है फैसले की,
लेकिन अवसर अनंत होते हैं।
बहुत कम अवसर पाए हैं फैसला करने के,
पर मुझे ऐसा लगता है
कि कोई भी फैसला अंतिम नहीं होता
परिणति तो एक और केवल एक ही
होती है फैसले की,
लेकिन अवसर अनंत होते हैं।
मेरे फैसले की घड़ी अभी आई नहीं!
ऐ लड़की-4
ऐ लड़की,
क्यों किया था फैसला तुमने
मेरे साथ अपने गठबंधन का।
जानकर मेरे बारे में
मुझसे मिलकर और बातें कर थोड़ी–सी
क्या सचमुच परख लिया था तुमने मुझे
पूरा का पूरा।
क्यों किया था फैसला तुमने
मेरे साथ अपने गठबंधन का।
जानकर मेरे बारे में
मुझसे मिलकर और बातें कर थोड़ी–सी
क्या सचमुच परख लिया था तुमने मुझे
पूरा का पूरा।
क्या सोचकर
रचाई थी तुमने अपने हाथों में मेंहदी
लगवाया था अपने बदन पर
हल्दी का उबटन
डाली थी गले में वरमाला
सात फेरों के साथ लिया था मुझसे वादा
सात वचनों का।
रचाई थी तुमने अपने हाथों में मेंहदी
लगवाया था अपने बदन पर
हल्दी का उबटन
डाली थी गले में वरमाला
सात फेरों के साथ लिया था मुझसे वादा
सात वचनों का।
चौक–चौबारे
और पूजकर कुलदेव–देवियाँ
रखकर व्रत–उपवास और
मन्नतें माँगकर तीर्थों की कष्टपूर्ण यात्राओं में
गुहार लगाते हुए जिस वर की
सैकड़ों बार की थी तुमने कामना
मैं क्या वही हूँ?
और पूजकर कुलदेव–देवियाँ
रखकर व्रत–उपवास और
मन्नतें माँगकर तीर्थों की कष्टपूर्ण यात्राओं में
गुहार लगाते हुए जिस वर की
सैकड़ों बार की थी तुमने कामना
मैं क्या वही हूँ?
ऐ लड़की-5
ऐ लड़की,
कैसे चली आई थी तुम
थामकर मेरा हाथ
मेरे पीछे
विदा वेला में हँसते–मुस्कराते-
मॉं–बाप, भाई–बहन,
बंधु–बांधव, सखी–सहेलियॉं,
पास–पड़ोस और गाँव–जवार
जबर्दस्ती रोने की करते हुए
जबर्दस्त कोशिश के साथ
प्रतीक्षारत था
दान की गई बछिया का
करुण रुदन सुनने को।
कैसे चली आई थी तुम
थामकर मेरा हाथ
मेरे पीछे
विदा वेला में हँसते–मुस्कराते-
मॉं–बाप, भाई–बहन,
बंधु–बांधव, सखी–सहेलियॉं,
पास–पड़ोस और गाँव–जवार
जबर्दस्ती रोने की करते हुए
जबर्दस्त कोशिश के साथ
प्रतीक्षारत था
दान की गई बछिया का
करुण रुदन सुनने को।
बेटी–विदाई के अवसर पर होनेवाले
पारंपरिक, बहु प्रचलित और
सर्वापेक्षित विलाप को
अपने होंठों की मुस्कान में समेटकर
किस भरोसे पर जज्ब किया था
तुमने अपने भीतर?
किस पर विश्वास था तुम्हें सबसे ज्यादा?
अपनी प्रार्थनाओं पर,
मुझसे लिए गए सात वचनों पर,
हथेली पर गहरे लाल उग आई मेंहदी पर
अथवा मुझे परखकर लिए गए अपने फैसले पर?
पारंपरिक, बहु प्रचलित और
सर्वापेक्षित विलाप को
अपने होंठों की मुस्कान में समेटकर
किस भरोसे पर जज्ब किया था
तुमने अपने भीतर?
किस पर विश्वास था तुम्हें सबसे ज्यादा?
अपनी प्रार्थनाओं पर,
मुझसे लिए गए सात वचनों पर,
हथेली पर गहरे लाल उग आई मेंहदी पर
अथवा मुझे परखकर लिए गए अपने फैसले पर?
सम्वेदनशील कविताएँ . सादर
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