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हसरत जयपुरी |
आज हिंदी फ़िल्मों के मशहूर गीतकार हसरत जयपुरी (15 अप्रैल,
1918 - 17 सिंतबर, 1999) की जन्मतिथि है। महज
फ़िल्म से जुड़े लोग ही जानते हैं कि हसरत जयपुरी का मूल नाम इकबाल हुसैन है। जब भी 'टाइटल सॉन्ग' की बात होती है, तो
हसरत जयपुरी का नाम बड़े अदब के साथ लिया जाता है। हसरत जयपुरी ने संगीतकार शंकर
जयकिशन के साथ सबसे अधिक काम किया। 1966 में फिल्म ‘सूरज’ के गीत 'बहारों फूल
बरसाओ मेरा महबूब आया है' और 1971 मे
फिल्म ‘अंदाज’ में 'जिंदगी एक सफर है सुहाना' जैसे गीत के लिए फिल्म
फेयर पुरस्कार पाने वाले हसरत, वर्ल्ड यूनिवर्सिटी टेबुल के
डाक्ट्रेट अवार्ड और उर्दू कान्फ्रेंस में जोश मलीहाबादी अवार्ड से भी सम्मानित
किए गए। फिल्म ‘मेरे हुजूर’ में हिन्दी
और ब्रज भाषा में रचित गीत ‘झनक झनक तोरी बाजे पायलिया’ के लिए वह ‘अम्बेडकर अवार्ड’
से सम्मानित किए गए। हसरत जयपुरी ने तीन दशक लंबे अपने सिने कैरियर में 300 से अधिक फिल्मों के लिए लगभग 2000 गीत लिखे। उनकी
जन्मतिथि के मौक़े पर पेश हैं कुछ ग़ज़लें : बीइंग पोएट
1.
वो अपने चेहरे में सौ
आफ़ताब रखते हैं
इसीलिये तो वो रुख़ पे नक़ाब रखते हैं
इसीलिये तो वो रुख़ पे नक़ाब रखते हैं
वो पास बैठें तो आती है
दिलरुबा ख़ुश्बू
वो अपने होठों पे खिलते गुलाब रखते हैं
वो अपने होठों पे खिलते गुलाब रखते हैं
हर एक वर्क़ में तुम ही
तुम हो जान-ए-महबूबी
हम अपने दिल की कुछ ऐसी किताब रखते हैं
हम अपने दिल की कुछ ऐसी किताब रखते हैं
जहान-ए-इश्क़ में सोहनी
कहीं दिखाई दे
हम अपनी आँख में कितने चेनाब रखते हैं
हम अपनी आँख में कितने चेनाब रखते हैं
2.
शोले ही सही आग लगाने के
लिये आ
फिर तूर के मंज़र को दिखाने के लिये आ
फिर तूर के मंज़र को दिखाने के लिये आ
ये किस ने कहा है मेरी
तक़दीर बना दे
आ अपने ही हाथों से मिटाने के लिये आ
आ अपने ही हाथों से मिटाने के लिये आ
ऐ दोस्त मुझे
गर्दिश-ए-हालात ने घेरा
तू ज़ुल्फ़ की कमली में छुपाने के लिये आ
तू ज़ुल्फ़ की कमली में छुपाने के लिये आ
दीवार है दुनिया इसे राहों
से हटा दे
हर रस्म मुहब्बत की मिटाने के लिये आ
हर रस्म मुहब्बत की मिटाने के लिये आ
मतलब तेरी आमद से है दरमाँ
से नहीं
'हसरत' की क़सम दिल ही दुखाने के लिये आ
'हसरत' की क़सम दिल ही दुखाने के लिये आ
3.
यारो मुझे मु'आफ़ करो मैं नशे में हूँ
अब थोड़ी दूर साथ चलो मैं नशे में हूँ
अब थोड़ी दूर साथ चलो मैं नशे में हूँ
जो कुछ भी कह रहा हूँ नशा
बोलत है ये
इसका न कुछ ख़याल करो मैं नशे में हूँ
इसका न कुछ ख़याल करो मैं नशे में हूँ
उस मैकदे की राह मे गिर
जाऊँ न कहीं
अब मेरा हाथ थाम तो लो मैं नशे में हूँ
अब मेरा हाथ थाम तो लो मैं नशे में हूँ
मुझको तो अपने घर का पता
याद ही नहीं
तुम मेरे आस पास रहो मैं नशे में हूँ
तुम मेरे आस पास रहो मैं नशे में हूँ
कैसी गुज़र रही है मुहब्बत
में ज़िंदगी
'हसरत' कुछ अपना हाल कहो मैं नशे में हूँ
'हसरत' कुछ अपना हाल कहो मैं नशे में हूँ
4.
इस तरह हर ग़म भुलाया
कीजिये
रोज़ मैख़ाने में आया कीजिये
रोज़ मैख़ाने में आया कीजिये
छोड़ भी दीजिये तकल्लुफ़
शेख़ जी
जब भी आयें पी के जाया कीजिये
जब भी आयें पी के जाया कीजिये
ज़िंदगी भर फिर न उतेरेगा
नशा
इन शराबों में नहाया कीजिये
इन शराबों में नहाया कीजिये
ऐ हसीनों ये गुज़ारिश है
मेरी
अपने हाथों से पिलाया कीजिये
अपने हाथों से पिलाया कीजिये
5.
ये कौन आ गई दिलरुबा महकी
महकी
फ़िज़ा महकी महकी हवा महकी महकी
फ़िज़ा महकी महकी हवा महकी महकी
वो आँखों में काजल वो
बालों में गजरा
हथेली पे उसके हिना महकी महकी
हथेली पे उसके हिना महकी महकी
ख़ुदा जाने किस-किस की ये
जान लेगी
वो क़ातिल अदा वो सबा महकी महकी
वो क़ातिल अदा वो सबा महकी महकी
सवेरे सवेरे मेरे घर पे आई
ऐ 'हसरत' वो बाद-ए-सबा महकी महकी
ऐ 'हसरत' वो बाद-ए-सबा महकी महकी
6.
हम रातों को उठ उठ के जिनके
लिये रोते हैं
वो ग़ैर की बाहों में आराम से सोते हैं
वो ग़ैर की बाहों में आराम से सोते हैं
हम अश्क जुदाई के गिरने ही
नहीं देते
बेचैन सी पलकों में मोती से पिरोते हैं
बेचैन सी पलकों में मोती से पिरोते हैं
होता चला आया है बेदर्द
ज़माने में
सच्चाई की राहों में काँटे सभी बोतें हैं
सच्चाई की राहों में काँटे सभी बोतें हैं
अंदाज़-ए-सितम उन का देखे
तो कोई 'हसरत'
मिलने को तो मिलते हैं नश्तर से चुभोते हैं
मिलने को तो मिलते हैं नश्तर से चुभोते हैं
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