![]() |
राम प्रसाद बिस्मिल |
हिंदी दिवस
के सुअवसर पर प्रस्तुत है राम प्रसाद बिस्मिल की कविता
‘न चाहूँ मान’ : बीइंग पोएट
न चाहूँ मान दुनिया में,
न चाहूँ स्वर्ग को जाना
मुझे वर दे यही माता, रहूँ भारत पे दीवाना
मुझे वर दे यही माता, रहूँ भारत पे दीवाना
करूँ मैं कौम की सेवा पड़े
चाहे करोड़ों दुख
अगर फिर जन्म लूँ आकर तो भारत में ही हो आना
अगर फिर जन्म लूँ आकर तो भारत में ही हो आना
लगा रहे प्रेम हिंदी में,
पढूँ हिंदी लिखुँ हिन्दी
चलन हिंदी चलूँ, हिंदी पहनना, ओढ़ना, खाना
चलन हिंदी चलूँ, हिंदी पहनना, ओढ़ना, खाना
भवन में रोशनी मेरे रहे हिंदी
चिराग़ों की
स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना
स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना
लगें इस देश के ही अर्थ
मेरे धर्म, विद्या, धन
करूँ मैं प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना
करूँ मैं प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना
नहीं कुछ ग़ैर मुमकिन है जो
चाहो दिल से ‘बिस्मिल’ तुम
उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना
उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना
No comments:
Post a Comment