पंखुरी सिन्हा |
कथाकार और
कवि पंखुरी सिन्हा (जन्म: 18 जून 1975) हिंदी पाठकों के लिए एक जाना-पहचाना नाम है। पंखुरी की
प्रकाशित पुस्तकों में ‘कोई भी दिन’ और ‘क़िस्सा-ए-कोहिनूर’ कहानी-संग्रह हैं। ‘ककहरा’ नामक कविता-संग्रह जल्द ही प्रकाशित होने वाला है। इनकी कविताएँ विभिन्न
भाषाओं में अनुदित हो चुकी हैं। कई पुरस्कारों से सम्मानित पंखुरी सिन्हा की दो
कविताएँ प्रस्तुत हैं : बीइंग पोएट
रात का
सूर्योदय
रात जिसका सूर्योदय न हो,
कहीं नहीं,
न कोई आखिरी पहर,
ऐसी स्याह, काली रात,
दिन पर छाई हुई,
मैला किए उसे,
किए उसे गंदूमी,
कि सूरज गिरफ्त में हो,
हिरासत में रौशनी,
वो काम जो मुक़म्मल करना था,
उसके लिए कोई कल नहीं,
कोई कल नहीं,
न आने वाला,
न होने वाला,
कहनी थी बात जो उससे,
कोई कल नहीं उसके लिए,
संभालनी थी, अलगनी पर,
किताब जो,
उसके लिए कोई कल नहीं,
सवांरने थे जो शब्द किताब में,
कोई कल नहीं उसके लिए।
कहीं नहीं,
न कोई आखिरी पहर,
ऐसी स्याह, काली रात,
दिन पर छाई हुई,
मैला किए उसे,
किए उसे गंदूमी,
कि सूरज गिरफ्त में हो,
हिरासत में रौशनी,
वो काम जो मुक़म्मल करना था,
उसके लिए कोई कल नहीं,
कोई कल नहीं,
न आने वाला,
न होने वाला,
कहनी थी बात जो उससे,
कोई कल नहीं उसके लिए,
संभालनी थी, अलगनी पर,
किताब जो,
उसके लिए कोई कल नहीं,
सवांरने थे जो शब्द किताब में,
कोई कल नहीं उसके लिए।
धर्मराज को
स्वर्ग
धर्मराज को स्वर्ग,
सशरीर,
युधिष्ठिर को स्वर्ग,
तुम क्यों द्रौपदी की भाषा में बिलख रही हो?
प्यार भी द्रौपदी की भाषा में कर रही हो?
क्यों जोड़ रही हो,
चाँद और तारों से नाता?
चाँद और सूरज ने तो बहुतों को छुआ नहीं,
लेकिन क्या सम्राट भी सबकुछ दांव पर लगाया करते हैं?
कभी?
सौ पुत्रों की मौत?
अपनी भी मौत?
क्या खेले गए पासे कभी और यों?
क्या ऐसे भेजे गए चौपड़ के निमंत्रण कभी और?
क्या लड़ाई की ऐसी रचना की गयी कभी?
क्या विध्वंस का ऐसा अनुष्ठान,
ऐसा आह्वान,
किया गया कभी?
क्या इश्वर को पुकारा है,
कभी किसी ने,
जैसे द्रौपदी ने?
पांचाली ने?
अंतरिक्ष सतत है,
आसमान सनातन,
अव्यय हैं सूर्य की किरणें,
अनश्वर चन्द्रमा का प्रकाश,
पर तुम क्यों जोड़ रही हो नाता,
परिभाषा से परे,
किरणों से,
हिरणों से?
क्या है यह प्रकृति साधना,
खुद को प्रतिष्ठित करना,
चाँद और सूरज की परिधि में?
किरणों के दायेरे में उनकी?
बाहर और भीतर?
सशरीर,
युधिष्ठिर को स्वर्ग,
तुम क्यों द्रौपदी की भाषा में बिलख रही हो?
प्यार भी द्रौपदी की भाषा में कर रही हो?
क्यों जोड़ रही हो,
चाँद और तारों से नाता?
चाँद और सूरज ने तो बहुतों को छुआ नहीं,
लेकिन क्या सम्राट भी सबकुछ दांव पर लगाया करते हैं?
कभी?
सौ पुत्रों की मौत?
अपनी भी मौत?
क्या खेले गए पासे कभी और यों?
क्या ऐसे भेजे गए चौपड़ के निमंत्रण कभी और?
क्या लड़ाई की ऐसी रचना की गयी कभी?
क्या विध्वंस का ऐसा अनुष्ठान,
ऐसा आह्वान,
किया गया कभी?
क्या इश्वर को पुकारा है,
कभी किसी ने,
जैसे द्रौपदी ने?
पांचाली ने?
अंतरिक्ष सतत है,
आसमान सनातन,
अव्यय हैं सूर्य की किरणें,
अनश्वर चन्द्रमा का प्रकाश,
पर तुम क्यों जोड़ रही हो नाता,
परिभाषा से परे,
किरणों से,
हिरणों से?
क्या है यह प्रकृति साधना,
खुद को प्रतिष्ठित करना,
चाँद और सूरज की परिधि में?
किरणों के दायेरे में उनकी?
बाहर और भीतर?
Pankhuri jee bahut gehri kavitaen hain us par aapki kavita dharmraj ko swarg ne kaphii prabhavit kiya hai.
ReplyDeleteसम्मानित कवियत्री पांखुरी जी , बहुत ही सुन्दर और दार्शनिकता की परिधि पर मंत्रणा करते हुए आपकी रचना धर्मराज को स्वर्ग | शुभकामनायें आपको
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना आपकी सम्मानित कवियत्री पांखुरी जी |
ReplyDeleteअच्छी कविताएँ हैं |पंखुरी जी ,बधाई आपको |इतिहास को स्त्री दृष्टि से देखने की जरूरत है आज |
ReplyDeleteसारगर्भित कविताएँ |सजग स्त्री दृष्टि |
ReplyDeleteप्रश्न तो अनेक हैं ... सब अनुत्तरित है ,,,,, मिल पायगा क्या इनके उत्तर कभी ?
ReplyDeletelatest postऋण उतार!
bhut khubsurat shabdo ka milan aur gehri samvedna liye apki ye kavitaye chandrapal , mumbai
ReplyDeleteBahut dhanyawad Arun ji,
ReplyDeleteRavivar ka charcha manch dekha, achcha laga, kavitayon ki achchi vyakhya ho to bahut hi achchi baat hai, badhai Arun ji, aur dhanyawad
ReplyDeletepankhuriji,..aaj ki kavita,aaj ka vishaye.,aaj ke chintan ke sath aap utkrushth bhav rakhti hai....bahut khub.......
ReplyDeleteaapke vishaye hamesha hi sarthak aur jivant hote hai..utkrushth rachnao ke liye, hamara abhinandan....
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