निलय उपाध्याय ऐसे रचनाकार हैं, जिनकी आँख का उजाला गाँव में ‘भक्क इजोरिया’ का कारण बनता है और सोच का रेशम शहर को रंगीन बनाता है। वो जब भी शहर या गाँव के बारे में लिखते हैं, दोनों का रंग अलग होता है। वो अपनी कविता-कहानी में दोनों जगहों की समस्या, लोग, हवा, माहौल, दुख, राजनीति, व्यवसाय, मिट्टी, बाज़ार आदि के बारे में चर्चा करते हैं। शहर में बसने के बावजूद उनके भीतर जो एक गाँव अब भी कहीं बसा हुआ है, बार-बार उस गाँव की याद उनके ज़ेहन को ज़ख़्मी कर जाती है। वो शब्दों के मरहम अपनी चोट पर मलते हैं। वो हवाओं पर लिखे हुए आवाज़ों को देखते हैं, पढ़ते हैं। उसे पहचानते हैं। उसे पहनते हैं। उनकी नज़र मुड़ती है, फिसलती है, टूटती है और टूट कर साहित्याकाश पर कुछ निशान छोड़ जाती है। आईए आज हम उन्हीं निशानों को पढ़ने-समझने की कोशिश करते हैं : त्रिपुरारि कुमार शर्मा
मूसहर टोल में बारिश : कुछ चित्र
1.
पानी से पीट रहे हैं
पंखो वाले हाथी
हवाएँ
हाड़ कूट रही हैं
पंखो वाले हाथी
हवाएँ
हाड़ कूट रही हैं
किसी का छप्पर भसक गया
गिर गई किसी की दीवार
गिर गई किसी की दीवार
भाग रे कलुआ
लुत्ती फेंक रहा है
कहीं टूट कर गिर ना जाए
बिजली का नंगा तार
लुत्ती फेंक रहा है
कहीं टूट कर गिर ना जाए
बिजली का नंगा तार
डरा हुआ सांप
डरी हुई सत्ता-सी खूंखार
मंहगाई-सी जबर
यह
मूसला धार
डरी हुई सत्ता-सी खूंखार
मंहगाई-सी जबर
यह
मूसला धार
2.
सहजन के लासे में
दीवार से टिकुली सटी है
जिस औरत की
वह कहाँ जाएगी इस वक़्त
दीवार से टिकुली सटी है
जिस औरत की
वह कहाँ जाएगी इस वक़्त
फूस के छ्प्पर से लगी
अलगनी पर
टंगा है जिसका कुर्ता
वह कहाँ जाएगा इस वक़्त
अलगनी पर
टंगा है जिसका कुर्ता
वह कहाँ जाएगा इस वक़्त
तिनका-तिनका चुन
छ्प्पर बनाया
कतरा-कतरा चढ़ाई मिट्टी
मिट्टी की माचिस को कहा घर
कहाँ जाएँगे इस आफ़त में
छ्प्पर बनाया
कतरा-कतरा चढ़ाई मिट्टी
मिट्टी की माचिस को कहा घर
कहाँ जाएँगे इस आफ़त में
कहाँ बिछा है उनके लिए
धरती का बिस्तर
कहाँ तना है छाते-सा आसमान
धरती का बिस्तर
कहाँ तना है छाते-सा आसमान
3.
बज्जर गिरा छाती पर
छ्प्पर पर मेघ गिरे
छ्प्पर पर मेघ गिरे
दीवार से लगी खूंटी गिरी
अलगनी गिरी
बांस गिरा
छ्प्पर से कसा बांस गिरा
अलगनी गिरी
बांस गिरा
छ्प्पर से कसा बांस गिरा
चुल्हा गिरा
थाली में माटी का लौदा गिरा
बिखर गया तसले का भात
थाली में माटी का लौदा गिरा
बिखर गया तसले का भात
तिनके पर
टंगी बूंद-सा
अब गिरा तब गिरा घर
अब गिरा तब गिरा जीवन
डोल रहे हैं दिशाओ के खम्भे
टंगी बूंद-सा
अब गिरा तब गिरा घर
अब गिरा तब गिरा जीवन
डोल रहे हैं दिशाओ के खम्भे
खेतों के
बिल में पानी भर जाने के बाद
जैसे मूस निकलते है
रोंआ सटाए
निकल रहे है मूसहर।
बिल में पानी भर जाने के बाद
जैसे मूस निकलते है
रोंआ सटाए
निकल रहे है मूसहर।
4.
सिकुड़ गई है हाथ पांव की चमड़ी
फूल गई है देह की मैल
फूल गई है देह की मैल
पानी की बूंदो के
डंक मार रहे हैं मेघ
डंक मार रहे हैं मेघ
जैसे कोई उखाड़ रहा हो
नेनुए की लतर
पछाड़ खा रहा है नीम का पेड़
नेनुए की लतर
पछाड़ खा रहा है नीम का पेड़
सड़क के पास
उमड़ आई नदी के धार को पछाड़ता
मिट्टी को नाखून से पकड़े
अब भी इस अरह पड़ा है सिल
जैसे धरती
इंद्र को ठेंगा दिखा रही हो
उमड़ आई नदी के धार को पछाड़ता
मिट्टी को नाखून से पकड़े
अब भी इस अरह पड़ा है सिल
जैसे धरती
इंद्र को ठेंगा दिखा रही हो
5.
मुझे भी ले चलो
चिल्लाया जब
बांस के खम्भे पर टंगा तसला
तो याद आया कि भीतर रह गया
टीन आटा का
चिल्लाया जब
बांस के खम्भे पर टंगा तसला
तो याद आया कि भीतर रह गया
टीन आटा का
एकाएक
जैसे बिजली की रास पकड़
तड़कते आसमान से
कूद गया कोई
जैसे बिजली की रास पकड़
तड़कते आसमान से
कूद गया कोई
घर में घुसा
आटे का टीन उठाया
कुर्ता उतारा और अदेखा
तैर गया
आटे का टीन उठाया
कुर्ता उतारा और अदेखा
तैर गया
एक पल काली पीठ दिखी
दूसरे पल उल्लास से भरा चेहरा
दूसरे पल उल्लास से भरा चेहरा
भद..
भद..पपड़ी गिरी
भदाक गिरा लौंदा
छप्पर समेत घर गिरा
तीसरे पल
भद..पपड़ी गिरी
भदाक गिरा लौंदा
छप्पर समेत घर गिरा
तीसरे पल
6.
चींटियों की तरह सिर सटाए
और गोलबंद
खड़े हैं बीच सड़क पर
और गोलबंद
खड़े हैं बीच सड़क पर
भीगी हुई गठरिया,
कुते, सूअर
और बची हुई शराब की बोतल
सांस ले रहे हैं पशुओं की तरह
कटकटा रहे हैं दांत
कुते, सूअर
और बची हुई शराब की बोतल
सांस ले रहे हैं पशुओं की तरह
कटकटा रहे हैं दांत
कौन किसकी पत्नी है
कौन किसका बच्चा
टूट गए हैं
परिवारों के अलग अलग बृत
कौन किसका बच्चा
टूट गए हैं
परिवारों के अलग अलग बृत
सटकर खड़े हैं
एक दूसरे के पास, बहुत पास
जैसे धरती से निकले हो
और फ़ेंक दिया हो
टूसा
एक दूसरे के पास, बहुत पास
जैसे धरती से निकले हो
और फ़ेंक दिया हो
टूसा
चार लोग
खम्भे की तरह
खम्भे की तरह
प्लास्टिक की पन्नी पर आसमान थाम
खड़े हो गए, औरतो ने बना दिया मेड़,
तो दौड़ी आ गई धरती भी
उनके पास, जानती है
कि मूसहर है
जानते है आफ़त से लडना
खड़े हो गए, औरतो ने बना दिया मेड़,
तो दौड़ी आ गई धरती भी
उनके पास, जानती है
कि मूसहर है
जानते है आफ़त से लडना
7.
सरकन्डा दिखा तो
उखाड़ लिया एक औरत ने
एक बच्चे को लंबाई से नापा
और झाड़ दिया
हाबा डाबा
उखाड़ लिया एक औरत ने
एक बच्चे को लंबाई से नापा
और झाड़ दिया
हाबा डाबा
जूं खुजलाती औरतों ने
अपने अपने बच्चे को देखा
किसी ने सिर सहलाया
किसी ने पकड़ा दिया स्तन
अपने अपने बच्चे को देखा
किसी ने सिर सहलाया
किसी ने पकड़ा दिया स्तन
जाने कहां से
मरियल चूहा पकड़ लाए बच्चे
कांपता दिखा तो पिला दिया दारू,
चलने लगा मटक मटक
तो भूल गए आफ़त
हंस पडे सब के सब
मरियल चूहा पकड़ लाए बच्चे
कांपता दिखा तो पिला दिया दारू,
चलने लगा मटक मटक
तो भूल गए आफ़त
हंस पडे सब के सब
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