कमल जीत चौधरी ऐसे कवि का नाम है, जिन्हें कम शब्दों में बड़ी बात कहना बखूबी आता है। प्रेम को उपलब्ध होने के लिए ‘असामान्य होना’ पहली शर्त मानने वाले कवि कमल जीत जब आदमी की ओर आँख उठाते हैं, तो उन्हें इस समय आदमी एक पोस्टकार्ड की तरह दिखाई देता है। जब उनकी सोच कल्पनाओं का क्षितिज बुनती है, तो उस क्षितिज का रंग स्लेटी होना उचित है। यही स्लेटी रंग कवि का अपना रंग है। वो जानते हैं कि एक दिन यह रंग सारे रंगों को अपने में समो लेगा और पूरी पृथ्वी पर फैल जाएगा। उनकी आँख से ओझल हुईं वस्तुएँ अचानक से सफ़ेद पुतली पर आकार लेने लगती हैं, दिल-ओ-दिमाग़ पर पसर जाती हैं। ...शून्य से कविता उतरती रहती है और वो चुपचाप इस क्रिया का साक्षी बनते हैं। तो आईए पढ़ते हैं कमल जीत चौधरी की कविताएँ — त्रिपुरारि कुमार शर्मा
नाव का हम क्या करते
वहां
एक नदी थी
जहां हम खड़े थे
सिद्धस्त
अपनी अपनी कलाओं में-
एक नदी थी
जहां हम खड़े थे
सिद्धस्त
अपनी अपनी कलाओं में-
तुम डूबने से ज्यादा
तैरना जानते थे
मैं तैरने से ज्यादा डूबना...
तैरना जानते थे
मैं तैरने से ज्यादा डूबना...
नाव का हम क्या करते।
शांति
लाल और हरे
आँगन में बैठी
सफेद बुढ़िया
चरखा छोड़
नंगी सड़कों पर उतर आई है
उसके पास अब
नहीं बचा
सूत इतना
कि वह ३० जनवरी १९४८ को
ले छुपा...
आँगन में बैठी
सफेद बुढ़िया
चरखा छोड़
नंगी सड़कों पर उतर आई है
उसके पास अब
नहीं बचा
सूत इतना
कि वह ३० जनवरी १९४८ को
ले छुपा...
उसके पास तो अब है
एक चीख
एक डंडा
एक झंडा।
एक चीख
एक डंडा
एक झंडा।
आदमी-1
आदमी
इस समय
सबसे अधिक है
मशीनों में
इस समय
सबसे अधिक है
मशीनों में
मशीनों से
थोड़ा-सा कम
या फिर ज्यादा है
बाज़ारों में
थोड़ा-सा कम
या फिर ज्यादा है
बाज़ारों में
सबसे कम
या फिर न के बराबर
या फिर न के बराबर
बचा है संग्रहालयों में।
आदमी-2
आदमी इस समय
पोस्टकार्ड हुआ जा रहा है...
पोस्टकार्ड हुआ जा रहा है...
प्रेम
सामान्य रहकर नहीं किया जा सकता प्रेम
प्रेम नहीं रहने देता सामान्य।
प्रेम नहीं रहने देता सामान्य।
खिड़की से
जीवन में
एक न एक बार
हर आदमी को
खिड़की से ज़रूर देखना चाहिए
खिड़की से देखना
होता है
अलग तरह का देखना
चौकोना देखना
थोड़ा देखना
मगर साफ़ देखना।
एक न एक बार
हर आदमी को
खिड़की से ज़रूर देखना चाहिए
खिड़की से देखना
होता है
अलग तरह का देखना
चौकोना देखना
थोड़ा देखना
मगर साफ़ देखना।
धूमिल के लिए
काले अंग्रेजो का
लादे बोझा
वह घुमावदार सड़क पर
सीधा चलता
जयकारे लगाता
सीस नवाता
दरबार आता जाता
पैरों तले
पत्थर तोड़ता
दिनों दिन
लोहा बनता जा रहा है
वह धार का जनक
लादे बोझा
वह घुमावदार सड़क पर
सीधा चलता
जयकारे लगाता
सीस नवाता
दरबार आता जाता
पैरों तले
पत्थर तोड़ता
दिनों दिन
लोहा बनता जा रहा है
वह धार का जनक
धार जानता है
वार नहीं...
वार नहीं...
सड़क से उतरा भी जा सकता है
पगडण्डी की उंगली थाम
हरा समतल ढूंढा जा सकता है
वह नहीं जानता
पगडण्डी की उंगली थाम
हरा समतल ढूंढा जा सकता है
वह नहीं जानता
घोड़े की भाषा में
वह लोहे का स्वाद जानता है
हथोड़े की भाषा में
अपनी ताकत नहीं पहचानता
वह नहीं जानता-
वह जनता है।
वह लोहे का स्वाद जानता है
हथोड़े की भाषा में
अपनी ताकत नहीं पहचानता
वह नहीं जानता-
वह जनता है।
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