Saturday, December 03, 2011

जब पानी सर से बहता है

आरसी प्रसाद सिंह
छायावाद के तृतीय उत्थान के कवियों में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित आरसी प्रसाद सिंह को 'जीवन और यौवन' का कवि कहा जाता है। आज पेश है उनकी दो कविताएँ : बीइंग पोएट 

जब पानी सर से बहता है

तब कौन मौन हो रहता है? 
जब पानी सर से बहता है।

चुप रहना नहीं सुहाता है, 
कुछ कहना ही पड़ जाता है।

व्यंग्यों के चुभते बाणों को 
कब तक कोई भी सहता है? 
जब पानी सर से बहता है।

अपना हम जिन्हें समझते हैं। 
जब वही मदांध उलझते हैं,

फिर तो कहना पड़ जाता ही, 
जो बात नहीं यों कहता है।
जब पानी सर से बहता है।

दुख कौन हमारा बाँटेगा 
हर कोई उल्टे डाँटेगा।

अनचाहा संग निभाने में 
किसका न मनोरथ ढहता है?
जब पानी सर से बहता है। 

निर्वचन

चेतना के हर शिखर पर हो रहा आरोह मेरा।
अब न झंझावात है वह अब न वह विद्रोह मेरा।

भूल जाने दो उन्हें, जो भूल जाते हैं किसी को।
भूलने वाले भला कब याद आते हैं किसी को?
टूटते हैं स्वप्न सारे, जा रहा व्यामोह मेरा।
चेतना के हर शिखर पर हो रहा आरोह मेरा।

ग्रीष्म के संताप में जो प्राण झुलसे लू-लपट से,
बाण जो चुभते हृदय में थे किसी के छल-कपट से!
अब उन्हीं चिनगारियों पर बादलों ने राग छेड़ा।
चेतना के हर शिखर पर हो रहा आरोह मेरा।

जो धधकती थी किसी दिन, शांत वह ज्वालामुखी है।
प्रेम का पीयूष पी कर हो गया जीवन सुखी है।
कालिमा बदली किरण में ; गत निशा, आया सवेरा।
चेतना के हर शिखर पर हो रहा आरोह मेरा।

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